हाँ हाँ मुझे पता है की "उत्तराहारी" जैसा कोई शब्द हिंदी शब्दकोष में नहीं है, किन्तु यहाँ प्रयोग किया गया ये शब्द मेरे दक्षिण भारत के अनुभवों से प्रेरित है। यहाँ का खाना खा कर मुझे ये एहसास हुआ कि मैं सिर्फ अपने आप को शाकाहारी कह कर अपनी भोजन शैली को अभिव्यक्त नहीं कर सकती।
ऐसा नहीं है की मुझे दक्षिण भारतीय खाने से कोई दिक्कत है, अपितु उ. प्र. में तो हम बाहर खाने के लिए डोसा बेहद पसंद करते थे। लेकिन चोट तो उस दिन हो गयी हमारे साथ जब यहाँ हमने डोसा मंगाया और मिला "सेट डोसा" वो भी "वेज करी " के साथ। उस दिन से डोसा लेने में भी हिचक होने लगी।
अगर आप कभी दक्षिण भारत में एक महीने भी रहे होंगे तो आप मेरी इस बात से अवश्य सहमत होंगे कि यहाँ मिलने वाला उत्तर भारतीय खाना भी दक्षिण की झलक लिए होता है। अगर थाली में रोटी है तो बस वो थाली "नोर्थ इंडियन " हो गयी। कोई ये भी तो देखो की उस रोटी के साथ तो साम्भर ही मिल रहा है। जिसे हो सकता है वो दाल कहें लेकिन उसमें लगे राई, करी पत्ते और चना दाल के तडके के बाद हमारे लिए उसे दाल कहना काफी मुश्किल है। और सब्जी! क्या कहने!! भिन्डी की तरी वाली सब्जी.... और सूखी भिन्डी में नारियल !! ये तो सिर्फ मैंने भिन्डी का ज़िक्र किया है... अगर सारी सब्जियों का हाल बता दिया तो पढ़ कर ही पेट भर जायेगा !
चावल का ज़िक्र किये बिना तो दक्षिण भारतीय भोजन असोचनीय है। वो भी हमारी तरह नहीं कि रोटी खाने के बाद थोड़े से चावल खा लिए, यहाँ रोटी आपने भले ही कितनी खाईं हों चावल तो फुल प्लेट खा ही सकते हैं। मेरे कार्यालय के भोजनालय में जब कभी "नोर्थ इंडियन" थाली मिलती है तो उसमें होती है एक रोटी, 2 प्रकार के चावल, राई के तडके वाली तथाकथित दाल, एक नारियल से सजी हुयी सब्जी और पापड़। जब मैं कह कर रोटी की संख्या बढवा लेती हूँ, तब भी परोसने वाले को चावल की मात्रा कम करने में बड़ी हिचक होती है।
हद तो ये है कि हर बुधवार को हमारे "किराये के मेजबान" सुबह के नाश्ते में भी चावल परोसते हैं। कोई तो इन्हें बताओ कि जीवन में चावल के अलावा और भी स्वादिष्ट व पौष्टिक चीज़ें उपलब्ध हैं।
खैर खाना चाहे जैसा भी हो ... जब कस के भूख लगी हो तो सब कुछ खा ही लिया जाता है। और बस यही करते आ रहे हैं हम पिछले एक महीने से ! आशा है कि हम भी धीरे धीरे यहाँ की पाककला के प्रशंसक बन जायेंगे।
ऐसा नहीं है की मुझे दक्षिण भारतीय खाने से कोई दिक्कत है, अपितु उ. प्र. में तो हम बाहर खाने के लिए डोसा बेहद पसंद करते थे। लेकिन चोट तो उस दिन हो गयी हमारे साथ जब यहाँ हमने डोसा मंगाया और मिला "सेट डोसा" वो भी "वेज करी " के साथ। उस दिन से डोसा लेने में भी हिचक होने लगी।
अगर आप कभी दक्षिण भारत में एक महीने भी रहे होंगे तो आप मेरी इस बात से अवश्य सहमत होंगे कि यहाँ मिलने वाला उत्तर भारतीय खाना भी दक्षिण की झलक लिए होता है। अगर थाली में रोटी है तो बस वो थाली "नोर्थ इंडियन " हो गयी। कोई ये भी तो देखो की उस रोटी के साथ तो साम्भर ही मिल रहा है। जिसे हो सकता है वो दाल कहें लेकिन उसमें लगे राई, करी पत्ते और चना दाल के तडके के बाद हमारे लिए उसे दाल कहना काफी मुश्किल है। और सब्जी! क्या कहने!! भिन्डी की तरी वाली सब्जी.... और सूखी भिन्डी में नारियल !! ये तो सिर्फ मैंने भिन्डी का ज़िक्र किया है... अगर सारी सब्जियों का हाल बता दिया तो पढ़ कर ही पेट भर जायेगा !
चावल का ज़िक्र किये बिना तो दक्षिण भारतीय भोजन असोचनीय है। वो भी हमारी तरह नहीं कि रोटी खाने के बाद थोड़े से चावल खा लिए, यहाँ रोटी आपने भले ही कितनी खाईं हों चावल तो फुल प्लेट खा ही सकते हैं। मेरे कार्यालय के भोजनालय में जब कभी "नोर्थ इंडियन" थाली मिलती है तो उसमें होती है एक रोटी, 2 प्रकार के चावल, राई के तडके वाली तथाकथित दाल, एक नारियल से सजी हुयी सब्जी और पापड़। जब मैं कह कर रोटी की संख्या बढवा लेती हूँ, तब भी परोसने वाले को चावल की मात्रा कम करने में बड़ी हिचक होती है।
हद तो ये है कि हर बुधवार को हमारे "किराये के मेजबान" सुबह के नाश्ते में भी चावल परोसते हैं। कोई तो इन्हें बताओ कि जीवन में चावल के अलावा और भी स्वादिष्ट व पौष्टिक चीज़ें उपलब्ध हैं।
खैर खाना चाहे जैसा भी हो ... जब कस के भूख लगी हो तो सब कुछ खा ही लिया जाता है। और बस यही करते आ रहे हैं हम पिछले एक महीने से ! आशा है कि हम भी धीरे धीरे यहाँ की पाककला के प्रशंसक बन जायेंगे।